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बुधवार, 23 फ़रवरी 2011

क्या हाऊस वाईफ का कोई अस्तित्व नहीं ?

क्या हाऊस वाईफ  का कोई अस्तित्व नहीं ?
क्या उसे financial decision लेने का कोई अधिकार नहीं ?
क्या   हाऊस वाईफ सिर्फ बच्चे पैदा  करने और घर सँभालने के लिए होती हैं ?
क्या हाऊस वाईफ का परिवार , समाज और देश के प्रति योगदान नगण्य हैं ?
यदि नहीं हैं तो
क्यों ये आजकल के लाइफ insurance , बैंक या mutual fund आदि से फ़ोन पर पूछा  जाता हैं कि आप हाऊस वाईफ हैं या वर्किंग  ?
financial decision तो सर लेते होंगे ?
इस तरह के प्रश्न करके ये लोग  हाऊस वाईफ के अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह खड़ा नहीं कर रहे ?

क्यों आज ये पढ़े लिखे होकर भी ऐसी अनपढ़ों जैसी बात पूछी जाती हैं और सबसे मज़ेदार बात ये कि पूछने वाली भी महिला होती हैं .
क्यूँ उसे पूछते वक्त इतनी शर्म नहीं आती कि महिलाएं वर्किंग हों या हाऊस वाईफ उनका योगदान देश के विकास में एक पुरुष से किसी भी तरह कमतर नहीं हैं . जबकि  आज सरकार ने भी घरेलू  महिलाओं के योगदान को सकल घरेलू  उत्पाद में शामिल करने का निर्णय लिया हैं .................अपने त्याग और बलिदान से , प्रेम और सहयोग से हाऊस वाईफ इतना बड़ा योगदान करती हैं ये बात ये पढ़े लिखे अनपढ़ क्यूँ नहीं समझ पाते ?

आज एक स्वस्थ और खुशहाल समाज इन्ही हाऊस वाईफ की देन हैं यदि ये भी एक ही राह पर निकल पड़ें तो पश्चिमी सभ्यता का अनुकरण करने में कोई कमी नहीं रहेगी और उसका खामियाजा वो चुका रहे हैं तभी वो भी हम पूरब वालों की तरफ देख रहे हैं और हमारे रास्तों का अनुसरण कर रहे हैं . आज बच्चों की परवरिश और घर की देखभाल करके जो हाऊस वाईफ अपना योगदान दे रही हैं वो किसी भी वर्किंग वूमैन से काम नहीं हैं ---------क्या ये इतनी सी बात भी इन लोगों को समझ नहीं आती ?

इस पर भी कुछ लोगों को ये नागवार गुजरता है और वो उनके अस्तित्व पर ही प्रश्न चिन्ह लगा देते हैं ..........पति और पत्नी दोनों शादी के बाद एक इकाई की तरह होते हैं फिर सिर्फ आर्थिक निर्णय लेने की स्थिति में एक को ही महत्त्व क्यूँ? क्या सिर्फ इसलिए क्यूंकि वो कमाता है ? ऐसा कई बार होता है कि कोई मुश्किल आये और पति न हो तो क्या पत्नी उसके इंतज़ार में आर्थिक निर्णय न ले ? या फिर पत्नी की हैसियत घर की चारदीवारी तक ही बंद है जबकि हम देखते हैं कि कितने ही घरों में आज और पहले भी आर्थिक निर्णय महिलाएं ही लेती हैं........पति तो बस पैसा कमाकर लाते हैं और उनके हाथ में रख देते हैं ..........उसके बाद वो जाने कैसे पैसे का इस्तेमाल करना है ..........जब पति पत्नी को एक दूसरे पर इतना भरोसा होता है तो फिर ये कौन होते हैं एक स्वच्छ और मजबूत रिश्ते में दरार डालने वाले.............ये कुछ लोगों की मानसिकता क्या दर्शा रही है कि हम आज भी उस युग में जी रहे हैं जहाँ पत्नी सिर्फ प्रयोग की वस्तु थी ............मानती हूँ आज भी काफी हद तक औरतों की ज़िन्दगी में बदलाव नहीं आया है तो उसके लिए सिर्फ हाउस वाइफ  के लिए ऐसा कहना कहाँ तक उचित होगा जबकि कितनी ही वोर्किंग वुमैन  भी आज भी निर्णय नहीं ले पातीं ...........उन्हें सिर्फ कमाने की इजाजत होती है मगर खर्च करने या आर्थिक निर्णय लेने की नहीं तो फिर क्या अंतर रह गया दोनों की स्थिति में ? फिर ऐसा प्रश्न पूछना कहाँ तक जायज है कि निर्णय कौन लेता है ? और ऐसा प्रश्न क्या घरेलू महिलाओं के अस्तित्व और उनके मन सम्मान पर गहरा प्रहार नहीं है ?


 ऐसी कम्पनियों पर लगाम नहीं लगाया जाना चाहिए ..........उन्हें इससे क्या मतलब निर्णय कौन लेता है .........वो तो सिर्फ अपना प्रयोजन बताएं बाकि हर घर की बात अलग होती है कि कौन निर्णय ले ...........ये उनकी समस्या है चाहे मिलकर लें या अकेले........उन्हें तो इससे फर्क नहीं पड़ेगा न ........फिर क्यूँ ऐसे प्रश्न पूछकर घरेलू महिलाओं के अस्तित्व को ही सूली पर लटकाते हैं ?


क्या आप भी ऐसा सोचते हैं कि -----------

घरेलू महिलाएं निर्णय लेने में सक्षम नहीं होतीं?
उन्हें अपने घर में दायरे तक ही सीमित रहना चाहिए?
आर्थिक निर्णय लेना उनके बूते की बात नहीं है ?
जो ये कम्पनियाँ कर रही हैं सही कर रही हैं?

39 टिप्‍पणियां:

रचना ने कहा…

great post

if every house wife will ask these questions from the telemarketer the problem will be solved

its important to react and confront immediately so that the person on the other end knows that they are "gender biased "

सुरेन्द्र "मुल्हिद" ने कहा…

bhaavpoorn lekh.

vandana gupta ने कहा…

@ rachna ji
shukriya aapka jo aapne lekh ko dhyan se padhkar comment diya varna to log samsya samajhte nahi aur pratikriya dene lagte hain..........thanks again.

mukti ने कहा…

एकदम सही लिखा है आपने वंदना जी. लेकिन इसमें गलती इन कंपनी वालों की नहीं उस मानसिकता की है, जिसमें घरेलू महिला को बस एक काम करने वाली मशीन समझ लिया जाता है. जबकि औरतों के इसी घरेलू कार्य की बदौलत पुरुष अपने कार्यस्थल पर अपनी पूरी क्षमता से कार्य कर पाता है.
जो लोग इस तरह के प्रश्न पूछते हैं वे अपने घरों में महिलाओं को आर्थिक निर्णय लेने की आज़ादी नहीं देते होंगे. ऐसे लोग कम नहीं, बहुतायत में हैं.इस विषय ए रचना जी की बात से सहमत हूँ. जब भी और जहाँ भी किसी महिला को लगे कि कोई बात उसके अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करती है, उसे टोकना चाहिए. जिस दिन सभी महिलायें टोकने लगेंगी, स्थिति सुधरने लगेगी और जो लोग अपने घरों में महिलाओं को आर्थिक निर्णय लेने का अधिकार नहीं देते उन पर भी दबाव पड़ेगा.
अच्छा लेख है. एक अच्छा प्रयास.

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

आपने बहुत बडी असंगति की ओर ध्‍यान दिलाया है। इनके विरूद्ध आवाज उठाई जानी चाहिए।

---------
ब्‍लॉगवाणी: ब्‍लॉग समीक्षा का एक विनम्र प्रयास।

Shah Nawaz ने कहा…

वंदना जी, हमारे घर में तो फ़ाईनेन्शिअल डिसीज़न हमारी गृहमंत्री मतलब श्रीमति जी लेती हैं....

इसलिए हमसे तो सवाल यह मालूम किया जाना चाहिए, की आप तो पति हैं, इसलिए पहले आपकी पत्नी से डिस्कस करना पड़ेगा!!!

वैसे मेरा मानना है कि फ़ाईनेन्शिअल मामलों में बिना श्रीमती जी के डिसीज़न लिया भी नहीं जा सकता है.

रश्मि प्रभा... ने कहा…

स्त्री घर के अन्दर... तब लोग यूँ 'अच्छा' कहते हैं जैसे कि आप बेकार है...
बाहर , तो विवाहोपरांत सारे हिसाब मालिक की निगाहों में .
'मालकिन' तो बस ऐसे ही पुकारू नाम होता है !
पर सत्य यह नहीं ... हॉउस वाइफ ' यानि घर की रौनक, साजसज्जा, खाना पीना, मेहमान का स्वागत , बच्चों की देखभाल, शुरुआत शिक्षा बच्चों की सब उनके हाथ ...
नौकरी वाली स्त्रियों के भी दायरे आर्थिक संबंध में निश्चित हैं !.... इतनी समर्थ महिला आर्थिक निर्णय नहीं ले सकती ...ऐसा आज भी जो सोचते हैं उनके मानसिक दिवालियेपन को समझा जा सकता है !
प्रश्न पुच्नेवाली महिलाओं को तो इसमें एक संतुष्टि मिलती है ...

Taarkeshwar Giri ने कहा…

वंदना जी नमस्कार.

बहुत ही बढ़िया मुद्दा उठाया हैं आज अपने. हाउस वाइफ का ही योगदान हैं कि घर और समाज के साथ साथ देश भी तरक्की कि राह पर हैं.

घर के सारे काम को खुद अपने उपर लेकर के एक हाउस वाइफ अपने पति और बच्चो को समय पर तैयार कर के ऑफिस और स्कूल भेजती हैं. शाम को फिर सबका ध्यान रखना सबकी पसंद ना पसंद के पकवान तैयार करना, एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी निभाती हैं हाउस वाइफ.

में अपनी खुद कि बात करू तो अगर मेरी पत्नी १० दिन के लिए भी गाँव चली जाती हैं तो ना तो में सही से खा पता हूँ और ना ही सही पहन पता हूँ.

में तो उनके धैर्य को सलाम करता हूँ,

उस से भी ज्यादा दिक्कत वर्किंग वूमेन के साथ होती हैं , वो तो ऑफिस के साथ -साथ घर का भी सारा काम संभालती हैं.

लेकिन आज का विषय जो हैं मुझे लगता हैं कि , किसी बैंक से आपके पास फ़ोन आया था . में आपको बता दूँ कि कभी -कभी बैंक कि फोरमल्टी के लिए वाइफ कि इन्कम को भी एड किया जाता हैं. उस दौरान ये जानकारी देनी जरुरी होती हैं कि वाइफ वर्किंग हैं या नान वर्किंग.

मेरे भाव ने कहा…

उन्हें सिर्फ कमाने की इजाजत होती है मगर खर्च करने या आर्थिक निर्णय लेने की नहीं तो फिर क्या अंतर रह गया दोनों की स्थिति में ? फिर ऐसा प्रश्न पूछना कहाँ तक जायज है कि निर्णय कौन लेता है ? और ऐसा प्रश्न क्या घरेलू महिलाओं के अस्तित्व और उनके मन सम्मान पर गहरा प्रहार नहीं है ?
.........

औरतों की प्रतिष्ठा से जुड़ा विषय चुना है आपने. बहुत खूब. हाउस वाइफ्स को अपने बारे में इन्हें बताना ही होगा कि हम नॉन वर्किंग या सिर्फ हाउस वाइफ नहीं बल्कि "होम मेकर" हैं जिन्हें आर्थिक निर्णय लेने का पूरा हक़ है और ये अधिकार उनके परिवार ने उन्हें दिया है .

Taarkeshwar Giri ने कहा…

वर्किंग ko working पढ़ा जाय. .

vandana gupta ने कहा…

@ muktiji @ tarkeshwar giri ji ,
आप दोनो का कहना सही है जब तक महिलाये स्वंय इन लोगो को सही रास्ता नही दिखायेंगी तब तक असर होने वाला नही है…………गिरी जी आपका कहना भी सही है मै तो रोज इस समस्या से दो-चार होती हूँ और मै भी हाउस वाइफ़ हूँ तो एक दिन इस प्रश्न ने दिमाग की घंटी बजा दी और मै चढ गयी पूछने वाली पर राशन पानी लेकर और उसके पास जवाब नही तो फोन ही डिस्कनैक्ट कर दिया मगर एक सवाल जरूर खडा कर दिया घरेलू महिलाओ के अस्तित्व पर्…………और मुझसे रहा नही गया तो सोचा सबके सामने इस समस्या को लाया जाये…………आप सबकी आभारी हूँ जो इस समस्या को समझ रहे हैं।

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

"Financial decision तो सर लेते होंगे ?"

वंदना जी, जब कोई वित् एजेंट इस तरह का सवाल पूछता है तो वह यह सुनिश्चित
करने की कोशिश करता है कि पतिदेव, पत्नी की मुट्ठी में कहाँ फिट बैठते है :)

vandana gupta ने कहा…

@ पी.सी.गोदियाल "परचेत" जी
ओ तेरे की कहाँ जाकर मारा है पापड वाले को………ये दूर की कौडी हमे तो नही सूझी…………आभार आपका हमे बता दिया अगली बार से ध्यान रखूँगी गोदियाल जी।

सुज्ञ ने कहा…

गम्भीर प्रश्न!!!
गम्भीरता से रखा गया, संतुलित धारदार!!

इसे कहते है नारी हित की सार्थक सोच।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

वन्दना जी मेरी सोच अलग है!
कुशल गृहणी ही तो संसार की स्रजनहार है!
आपके सभी प्रश्नों का एक ही लाइन में उत्तर है!
बाकी मुण्डे-मुण्डे मतिर्भिन्ना!

Learn By Watch ने कहा…

आप तो बस झिडक कर शांत कर दिया करिये ऐसे प्रश्न पूछने वालों को

आपके अंतिम तीनों प्रश्नों का उत्तर में तो नहीं में ही दूंगा, पर आपके पहले प्रश्न का उत्तर हां में भी नहीं दिया जा सकता और नहीं में भी नहीं.. प्रश्न सुधारिये इसके बाद इसका उत्तर भी नहीं है :)

वैसे मेरे घर में तो माँ और पिता जी मिल कर ही निर्णय लेते हैं, पर मेरे कुछ रिश्तेदारों के घरों में पूरा निर्णय सिर्फ "सर" ही लेते हैं, मैडम को तो उन्होंने सिर्फ मशीन बना रखा है, यदि में उनको ध्यान में रख कर ये सेल्समेन वाला काम करूं तो मेरा भी पहला सवाल यही होगा |

कम्पनियाँ जो सवाल तैयार करतीं हैं वो काफी रिसर्च के बाद तैयार किये जाते हैं, और ये सवाल इसलिए भी रखा गया होगा क्यूंकि शायद आज भी हाउस वाइफ को आर्थिक मामलों में शामिल करना ज्यादातर लोग पसंद नहीं करते |

पर आप चिंता मत कीजिये धीरे धीरे ये विश्वास टूटेगा, असल में स्त्रियां खुद ही अपना हक नहीं मांगतीं |

vandana gupta ने कहा…

@ Learn By Watch jii
इस लेख के माध्यम से सोये हुयो को जगाने का ही प्रयास है।

kshama ने कहा…

Badahee pravahmayee aur zabardast aalekh!
Kayi baar log ye sawaal bhee kar jate hain,ki,kya aap kaam kartee hain yaa sirf housewife hain!Matlab ek gruhini kaam nahee kartee kya?

kavita verma ने कहा…

vandana,mahilaon ke liye ye mansikata sirf house wives ke liye hi nahi hai.hame school se income tax return ka form mila ye kahate hue ki aapke husband ko de dijiyega vo bharva denge...hame samajhne ki jaroorat hi kaha thi ..ham to mahilayen hai....

अजित गुप्ता का कोना ने कहा…

असल में यह युवा परिवार के बारे में कुछ भी नहीं जानते। इन्‍हें तो जो रटाया जाता है वही तोते की तरह बोलते हैं। मैंने तो अभी तक एक भी घर ऐसा नहीं देखा जहाँ पुरुष निर्णय लेता हो और वह घर सफलता से चलता हो। जहाँ महिलाएं निर्णय लेती हैं वे घर सफलता से चलते हैं। अपवाद की बात मैं नहीं कर रही। ऐसे लोगों को घर बुला लिया करो और फिर वास्‍तविकता के दर्शन करा दिया करो।

Patali-The-Village ने कहा…

एकदम सही लिखा है आपने|

Rakesh Kumar ने कहा…

Darasal comanywale naye naye recruitors rakhte hai,jinki training me is taraf dhyan nahi diya jata,jo ki jaroori hai.Phir aisa bhi bahut baar hota hai ki jab ye log phone karte hon to kai baar unko 'housewife' ki taraf se hi .ye jabaab milta ho ki sub kuch hamaare "ye" hi bataayenge.Aaj ke samay me "housewife" ke sakaaratmak
sahyog se to inkaar kiye jaane ka koi prasann hi nahi hai.

rashmi ravija ने कहा…

बिलकुल सही बात कही है....ये तस्वीर बदलनी चाहिए...लोग हाउसवाइफ को आज भी एक अनपढ़, सिर्फ घर का ख्याल रखनेवाली ही समझते हैं...जबकि कई बार वे अकेले ही सारी जिम्मेदारियाँ वहन करती हैं.
हालांकि ज्यादा तादाद उन पुरुषों की ही है जो आर्थिक निर्णय अपने पास रखते हैं..फिर भी...धीरे-धीरे स्थितियाँ बदल रही हैं....और लोगों का ये भ्रम टूटना चाहिए.

राज भाटिय़ा ने कहा…

अजी यह कम्पनी के ऎजेंट ऎसा बोलते होंगे, क्योकि यह सब उन्हे सिखाया जाता हे, वर्ना घर मे तो दोनो ही समान हे, ओर मेरे ख्याल मे कोई भी पति ऎसा नही सोचता होगा...बिना पत्नि के घर ही कहां ?

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

घर के निर्णय मिलकर लिये जायें।

मनोज कुमार ने कहा…

प्रश्न सही है।
उत्तर :: हमारे घर में तो अंतिम निर्णय वो ही लेती हैं। और सारे निर्णय भी।
अनुभव :: एक जमीन उनके नाम से लेने का एग्रीमेंट कराया। अब एक हाउस वाइफ़ को न सरकार लोन दे रही है और न बैंक। सो अब एग्रीमेंट में अपना नाम डलवाना पड़ रहा है।

Shikha Kaushik ने कहा…

बहुत सार्थक प्रस्तुति .विचारणीय आलेख.आभार.....

वाणी गीत ने कहा…

टेलीमार्केटिंग वालों के ऐसे सवालों का सामना कई बार करना होता है ...अच्छा प्रश्न उठाया है आपने ..
अधिकांश घरों में महिलाएं चाहे कामकाजी हो या गृहिणी , आर्थिक मामलों से सम्बंधित निर्णय पुरुष ही लेते हैं...जबकि ऐसे मामलों में भी दोनों की सहमति होनी चाहिए ...गृहिणियों को इसका विरोध करना चाहिए
अच्छी जागरूक करती पोस्ट !

अजय कुमार झा ने कहा…

बिल्कुल ठीक । सबसे पहली बात कि सदियों से चली आ रही ऐसी छोटी छोटी बातों ने ही उस तथाकथित मानसिकता को बनाने और स्थापित होने में मदद की होगी । इसलिए जरूरी है कि आज हर छोटी बडी ऐसी बातों को न सिर्फ़ ध्यान में रखा जाए और सिरे से उन्हें नकारा जाए । हां सबसे हैरान करने वाली बात यही है कि खुद युवतियां भी इस तरह की जानकारी मांगतीं हैं , और कारण मुक्ति जी ने बता ही दिया है । बहुत ही सार्थक पोस्ट वंदना जी

OM KASHYAP ने कहा…

सही लिखा है
आप बहुत अच्छा लिखतें हैं

हरीश जोशी ने कहा…

जिस दिन हाउस वाइफ का आस्तित्‍व नहीं रहेगा उस दिन हाउस भी नहीं रहेगा और हाउस का मतलब परिवार से है। परिवार एक इकाई है और पत्‍नी उसकी धुरी । एक अच्‍छे परिवार में निर्णय लेने में पत्‍नी की ही राय को महत्‍ता दी जानी चाहिए और दी भी जाती है । बात मानसिकता की है जिसे बदलना होगा ।

ZEAL ने कहा…

.

आपके प्रश्न बहुत उचित एवं तर्क संगत हैं। एक गृहणी कों जो सम्मान मिलना चाहिए वह नहीं मिलता । मैंने दोनों स्थितियां देखी हैं। भारत में थी और नौकरी करती थी तो बहुत सम्मान मिलता था परिचित और अपरिचित सभी का । लेकिन पति की नौकरी विदेश में होने के कारण जबसे यहाँ हूँ , एक फुल टाइम गृहणी हूँ। अब कोई इज्ज़त नहीं है ।

लोग पैसा कमाने वाली मशीन कों इज्ज़त देते हैं । चाहे वो स्त्री हो या पुरुष । और पैसे के आधार पर ही उसकी काबिलियत कों आंकते हैं । एक गृहणी की मेहनत , उसकी Education , उसके बलिदानों का कोई मोल नहीं है । वो दिन भर कोल्हू के बैल की तरह काम करेगी तो भी पैसे नहीं कमा पाएगी । इसलिए इज्ज़त की हक़दार नहीं होगी सामाज की आँखों में ।

लेकिन मेरे विचार से एक गृहणी समुचित इज्ज़त की हक़दार है । उसी के सद्प्रयासों से एक घर , खुशहाल और समृद्ध होता है । परिवार में सब कुछ सुचारू रूप से चलता है । बच्चों कों बेहतर परवरिश और संस्कार मिलता है । हर क्षेत्र में उसके योगदानों कों नज़रंदाज़ करना अन्याय है ।

.

anshumala ने कहा…

वंदना जी
गलती कंपनी वालो की नहीं है वो तो वही सवाल कर रहें ही जो समाज का चलन है समाज का चलन तो यही है की घर के बड़े निर्णय खासकर आर्थिक मामलों का निर्णय घर के पुरुष ही लेते ही या उनमे उनकी सहमति पहले ली जाती है | हा अब कुछ जगहों में ये परिवर्तन आया है की इस तरह के निर्णय महिलाए लेने लगी है | समाज और उसी के आधार पर चलने वाली कंपनियों को अभी इन चीजो को स्वीकार करने में समय लगेगा |

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " ने कहा…

बहुत उपयोगी एवं प्रभावशाली पोस्ट

ज्योति सिंह ने कहा…

ऐसी कम्पनियों पर लगाम नहीं लगाया जाना चाहिए ..........उन्हें इससे क्या मतलब निर्णय कौन लेता है .........वो तो सिर्फ अपना प्रयोजन बताएं बाकि हर घर की बात अलग होती है कि कौन निर्णय ले ...........ये उनकी समस्या है चाहे मिलकर लें या अकेले........उन्हें तो इससे फर्क नहीं पड़ेगा न ........फिर क्यूँ ऐसे प्रश्न पूछकर घरेलू महिलाओं के अस्तित्व को ही सूली पर लटकाते हैं ?aap sahi kah rahi ,din bhar ki seva vyarth kar di jaati aesa kah kar .bahut uchit sawal raha .mukti ji ke vichar se main poori tarah sahmat hoon .

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) ने कहा…

आज एक बिलकुल ही नया और काबिले तारीफ़ अंदाज़ बहुत अच्छा लगा...

Dr.M.N.Gairola ने कहा…

ye stithi kaamkaaji mahilaon kee bhi hoti hai... vo kamaati to hain kintu yah nahi keh sakti ki unkaa bhi yogdaan hai...
dr nutan gairola..
abhi yah cmment maine apne husband ke blog se kiya hai....saadr

Atul Shrivastava ने कहा…

गंभीर विषय।

आपका सवाल वाजिब है।

महिलाओं को कहीं से कमतर नहीं आंका जा सकता।

हां, मैं इतना जरूर कहूंगा कि महिलाएं गृहणी भी हो सकती हैं और घर के बाहर भी नौकरी कर सकती हैं लेकिन पुरूष घर के बाहर नौकरी तो कर सकते हैं लेकिन घर में यदि एक दिन भी खाना बनाना पडे तो पुरूषों को अपनी औकात पता चल जाएगी।

हर पुरूष ऐसे वाक्‍यातों से दो चार होते होंगे जब उनकी पत्नियां बीमार पडती होंगी, क्‍या हाल होता होगा उनका वे ही जानत हैं।

महिलाएं आज के दौर में पुरूषों की बराबरी तो कर सकती हैं लेकिन मेरा मानना है कि पुरूष महिलाओं की बराबरी नहीं कर सकते। कभी नहीं कर सकते।



जहां तक ऐसी कंपनियों के ऐसे सवालों का जवाब है, पुरूषों को निर्णय लेने के पहले एक बार तो अपनी पत्‍नी से पूछना ही पडता है।



शुभकामनाएं आपको।

अच्‍छी रचना।

Dinesh pareek ने कहा…

bahut acchi rachana hai apki or Orto ke bare main jo apne vichar lekhe hai main to apke lekhani ka kayal ho gaya bahut hi sundar
bus app se 1 hi nivedan hai ki app isis tahar likhte rahiye or mere jese bloger ka bhi blog pe ake utsaha badeiye