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शनिवार, 16 मार्च 2013

सुनो कन्हाई तुम्हारी प्रीत ना हमें रास आयी



सुनो कन्हाई
तुम्हारी प्रीत ना हमें रास आयी

इकतरफ़ा प्रेम धुन की जो मुरली तुमने बजायी

उसी धुन ने हममें भी ये बात जगायी

जो तुम चाहो मोहना किसी एक का सर्वस्व

तो क्यों ना हम भी चाहें तुमसे तुम्हारा सर्वस्व

जो तुम चाहो मोहना कोई बिना शर्त तुम्हें चाहे

तो क्यों ना यही चाहत हमारे भी मन में जागे

हम भी तो युगों से प्यासे तडप रहे हैं

निस्वार्थ प्रेम को पाने की चाह में भटक रहे हैं

फिर क्यों तुमने सिर्फ़ अपनी चाहत ही जनायी

क्यों हमारी चाहत पर बन्दिशों की फ़ेहरिस्त लगायी

जो इसी को चाहत कहते हो

जो इसे ही प्रमाणित करते हो
जो इसी को सर्वोपरि प्रेम की परिणति कहते हो
तो सुन लो मोहन
इसी प्रेम की हमने भी तुमसे है आस लगायी
गर कर सकते हो इसी तरह प्रेम का प्रतिदान
तभी रखना तुम प्रेम के ऐसे उच्च पायदान
जो तुम खुद नहीं कर सकते
फिर कैसे हो हमसे उम्मीद करते
क्योंकि
हैं तो अंश तुम्हारे ही
जो तुम्हारी चाहत होगी
जो तुम्हारी भाव भंगिमा होगी
उसी का तो प्रतिबिम्ब बनेगा
और हम तुम्हारा ही तो प्रतिबिम्ब हैं
इसलिये कहती हूँ कृष्णा
उम्मीद वो ही करना जो तुम खुद निभा सको
वरना सुनो कन्हाई
ये इकतरफ़ा प्रेम की कहानी ना हमें रास आयी
बिना सूरत के भी भला कहीं अक्स बना करते हैं
इसलिये
सुनो कन्हाई

तुम्हारी प्रीत ना हमें रास आयी

9 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

सुन्दर भक्तिमय रचना।

कविता रावत ने कहा…

बहुत सुन्दर प्यारभरा उलाहना ...

Dr.NISHA MAHARANA ने कहा…

bahut acchi prastuti....premmay....

Rajendra kumar ने कहा…

बहुत ही सरस भक्तिमय रचना,आभार.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

भक्तिभाव में चूक नहीं होनी चाहिए।
प्रीत-रीत सब रास आ जायेंगी...!

रेखा श्रीवास्तव ने कहा…

बहुत सुन्दर भाव - ये प्रेम ही शाश्वत भाव है.

रेखा श्रीवास्तव ने कहा…

बहुत सुन्दर भाव - ये प्रेम ही शाश्वत भाव है.

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…

भक्ति भी है ,सर्त भी है ,प्रेम भी है .वाह! वन्दना जी ! अति उत्तम
latest postऋण उतार!

Kailash Sharma ने कहा…

कितना भी उलाहना दें, लेकिन उसके प्रेम से मुक्त कहाँ हो पाते हैं...बहुत सुन्दर भावमयी अभिव्यक्ति..